विजयवाड़ा की डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की प्रतिमा: भारत की सबसे बुलंद गैर-धार्मिक मूर्ति जो सामाजिक न्याय का प्रतिनिधित्व करती है।
विजयवाड़ा शहर में 20 जनवरी 2024 को दुनिया की सबसे ऊंची डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की प्रतिमा का उद्घाटन हुआ। इस प्रतिमा को सामाजिक न्याय की प्रतिमा (स्टैच्यू ऑफ सोशल जस्टिस) के नाम से जाना जाता है। यह प्रतिमा भारत के संविधान के निर्माता, बहुमुखी प्रतिभा, राजनेता और सामाजिक सुधारक डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को श्रद्धांजलि देने का एक शानदार तरीका है।
इस प्रतिमा का आकार 125 फीट का है, जो इसे भारत की सबसे बड़ी गैर-धार्मिक मूर्ति बनाता है। इसके नीचे का 85 फीट का आधार भी जोड़ दें, तो इसकी संपूर्ण ऊंचाई 206 फीट हो जाती है। यह प्रतिमा स्वदेशी सामग्री से बनी है, जिसमें 352 टन का लोहा और 112 टन का पीतल शामिल है। इस प्रतिमा की रचना और निर्माण एम/एस डिजाइन एसोसिएट्स, नोएडा ने किया है।
इस प्रतिमा के चारों ओर भी कई सुविधाएं हैं, जैसे कि डॉ. बी.आर. अम्बेडकर अनुभव केंद्र, जहां लोग उनके जीवन और कार्य से प्रभावित हो सकते हैं। इसके साथ ही, एक 2000 सीटों का कन्वेंशन सेंटर, एक फूड कोर्ट, बच्चों का खेल क्षेत्र, जलशरी, संगीतमय फव्वारा और हरे-भरे वॉकवे भी हैं। इस प्रतिमा का आधार बौद्ध वास्तुकला के कालचक्र महा मंडप से प्रेरित है।
इस प्रतिमा को बनाने की अनुमानित लागत 268 करोड़ आंकी गई है। चिफ मिनिस्टर वाईएस जगन मोहन रेड्डी द्वारा इस प्रतिमा की नींव जून 2020 में रखी थी।
इस प्रतिमा का उद्घाटन एक ऐतिहासिक घटना है, जो डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के विचारों और मूल्यों को सम्मान देता है। यह प्रतिमा उन लोगों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है, जो सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह प्रतिमा भारत की एकता और विविधता को दर्शाती है, जो डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के सपने का हिस्सा था।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के बारे में और जानने के लिए, हमें उनके जीवन और कार्य की झलक मिलती है। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ गांव में एक दलित परिवार में हुआ था। उन्हें बचपन से ही जातिवाद और अस्पृश्यता का सामना करना पड़ा। उन्होंने इन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ने के लिए शिक्षा का सहारा लिया। उन्होंने अलग-अलग विषयों में उच्च शिक्षा प्राप्त की, जैसे कि अर्थशास्त्र, राजनीति, धर्म, दर्शन, समाजशास्त्र, इतिहास, विधि और अंतर्राष्ट्रीय संबंध। उन्होंने भारत के अलावा अमेरिका और इंग्लैंड में भी अध्ययन किया।
उन्होंने अपने जीवन में अनेक भूमिकाएं निभाई, जैसे कि शिक्षक, वकील, लेखक, पत्रकार, संपादक, विधायक, मंत्री, राज्यसभा सदस्य, भारतीय संविधान समिति का अध्यक्ष और भारत के पहले न्याय मंत्री।
उन्होंने दलितों, महिलाओं, शोषित और अल्पसंख्यकों के लिए सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई लड़ी। उन्होंने जाति प्रथा, अस्पृश्यता, बाल विवाह, सती प्रथा और अन्य कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने दलितों के लिए आरक्षण, विशेष अधिकार और अलग-अलग धर्मग्रहण का अधिकार मांगा।
उन्होंने भारत के संविधान को लिखा, जो दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इस संविधान में भारत को एक संघीय, समानाधिकारी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया है। इस संविधान में मूल अधिकार, नागरिक कर्तव्य, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रीय एकता और अखंडता, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय प्राणी, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय फूल और राष्ट्रीय नदी का उल्लेख है।
उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बौद्ध धर्म अपनाया और लाखों दलितों को भी इस धर्म में शामिल किया। उन्होंने बौद्ध धर्म को एक वैज्ञानिक, नैतिक और मानवीय धर्म माना, जो सभी मनुष्यों को समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा प्रदान करता है।
उनका निधन 6 दिसंबर 1956 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ। उनके अंतिम संस्कार को लाखों लोगों ने शामिल होकर देखा। उनकी स्मृति में उनके जन्म और निधन के दिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर एक महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भारत के इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके योगदान, विचार और संदेश आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उनकी प्रतिमा उनकी विरासत को जीवित रखने का एक जरिया है।