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नागा साधु: शिव के अनोखे भक्त

नागा साधु: शिव के अनोखे भक्त__

कुंभ मेले का जिक्र सुनते ही हमारे मन में वह नजारा उभरता है, जिसमें नदी के किनारे अनगिनत लोग अपने पापों को धोते हैं, विविध प्रकार के साधु-संत अपने आश्रमों में वास करते हैं, और एक खास किस्म के साधु होते हैं, जिन्हें नागा साधु के नाम से जाना जाता है। ये वो साधु हैं, जो अपने शरीर को किसी कपड़े से नहीं ढकते हैं, बल्कि अपने शरीर को भस्म से लिपटाते हैं। ये शिव के परम भक्त हैं, जो अपने जीवन को शिव की आराधना में अर्पण करते हैं। ये युद्ध कला में भी कुशल हैं, और अपने आप को शिव के योद्धा समझते हैं।

नागा साधु कौन हैं?

नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं, जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिए प्रसिद्ध हैं। ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं, जिनकी परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी। ये अपने आश्रम हरिद्वार और दूसरे तीर्थों के दूरदराज इलाकों में हैं, जहां ये आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। इनके गुस्से के बारे में प्रचलित किस्से कहानियां भी भीड़ को इनसे दूर रखती हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह शायद ही किसी को नुकसान पहुंचाते हों। हां, लेकिन अगर बिना कारण अगर कोई इन्हें उकसाए या तंग करे तो इनका क्रोध भयानक हो उठता है। कहा जाता है कि भले ही दुनिया अपना रूप बदलती रहे लेकिन शिव और अग्नि के ये भक्त इसी स्वरूप में रहेंगे।

नागा साधु कैसे बनते हैं?

नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन होती है। नागा साधु बनने के लिए 10 से 15 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करना होता है। इसके बाद उन्हें अपने गुरू को इस बात का यकीन दिलाना होता है कि अब उनका जीवन पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित हो चुका है। इसके बाद ये खुद अपना जीते-जी पिंड दान करते हैं,

जिसका मतलब है कि वे अपने पूर्वजों को श्राद्ध करते हैं, और अपने शरीर को अग्नि में दान करते हैं। इसके बाद उन्हें अपने गुरू के चरणों में बैठकर अपने बाल काटने होते हैं, जिससे उनका संसार से संबंध टूट जाता है। इसके बाद उन्हें अपने अखाड़े का ध्वज और तलवार प्रदान की जाती है, जिससे वे शिव के सेनानी बन जाते हैं।

नागा साधु का जीवन शैली

नागा साधु अपने जीवन को शिव की भक्ति में लगाते हैं। वे अपने शरीर पर कोई कपड़ा नहीं पहनते हैं, बल्कि अपने शरीर को भस्म से ढकते हैं। भस्म उनके लिए शिव का प्रतीक है, जो उन्हें अग्नि से रक्षा करती है। वे अपने बालों को लंबे रखते हैं, और अपने माथे पर तीन रेखाओं का तिलक लगाते हैं। वे अपने गले में रुद्राक्ष की माला पहनते हैं, और अपने हाथों में त्रिशूल या तलवार पकड़ते हैं।

नागा साधु अपने आहार में बहुत सावधान रहते हैं। वे शाकाहारी होते हैं, और अपने भोजन में केवल फल, मूली, और दूध का प्रयोग करते हैं। वे अपने भोजन को भिक्षा के रूप में लेते हैं, और कभी भी अपने लिए भोजन नहीं बनाते हैं। वे अपने भोजन को अपने हाथों से खाते हैं, और कभी भी किसी बर्तन का प्रयोग नहीं करते हैं।

नागा साधु अपने दिन का अधिकांश समय ध्यान, योग, और शास्त्र अध्ययन में बिताते हैं। वे अपने गुरू के आदेशों का पालन करते हैं, और अपने अखाड़े की सेवा करते हैं। वे अपने अखाड़े के साथी साधुओं के साथ भी अच्छे संबंध रखते हैं, और उनसे शिक्षा और अनुभव प्राप्त करते हैं।

नागा साधु का कुंभ मेला में महत्व

नागा साधु कुंभ मेले का एक अभिन्न अंग हैं। ये हर बार कुंभ मेले में अपने अखाड़ों के साथ शामिल होते हैं, और अपनी शान और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं। ये अपने अखाड़ों के अनुसार विभिन्न रंगों के वस्त्रों और ध्वजों को लेकर घोड़ों, हाथियों, और रथों पर सवार होकर नगर में प्रवेश करते हैं। ये अपने त्रिशूल, तलवार, और भाले लहराते हुए नदी की ओर बढ़ते हैं, और अपने गुरू के आगे-आगे चलते हैं।

नागा साधु का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है शाही स्नान, जो कुंभ मेले का सबसे पवित्र और शुभ दिन होता है। इस दिन, नागा साधु अपने अखाड़ों के साथ नदी में पहले स्नान करते हैं, और फिर बाकी लोगों को स्नान करने की अनुमति देते हैं। ये मानते हैं कि इस दिन नदी में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं, और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।

नागा साधु कुंभ मेले में लोगों को अपनी भक्ति, तपस्या, और शक्ति का प्रतीक दिखाते हैं। वे लोगों को अपने ज्ञान और अनुभव से लाभ पहुंचाते हैं, और उनके प्रश्नों का उत्तर देते हैं। वे लोगों को शिव की महिमा और उपासना का मार्ग दिखाते हैं, और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति की ओर आकर्षित करते हैं।

इस प्रकार, नागा साधु भारत की एक अनूठी और अद्भुत संस्कृति का हिस्सा हैं। वे शिव के अनोखे भक्त हैं, जो अपने जीवन को शिव के लिए समर्पित करते हैं। वे अपने त्याग, तपस्या, और शक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं, और लोगों को अपनी भक्ति से प्रभावित करते हैं।

 

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